शीर्षक :- भारत 
भारत तुम कंहा हो....
एशिया, अमेरिका, यूरोप या अफ्रीका में,
अब तुम्हारा रूप है क्या?....
कला गोरा या लाल हरा,
गुरुओं ने बताया था तुम्हारा रूप....
ऋषियों ने समझाया था तुम्हारा स्वरूप,
विश्व गुरु से सम्मानित तुम थे....
मार्ग दर्शक थे सांस्कृतिक थे,
इतिहास था, स्त्रियों का सम्मान था....
पत्थरों के पुजारी थे,
सभ्यता का रस यही था....
नदियाँ थी, दूध की,
जल भी अमृत था....
ऐसी थी, गाथा,
तुम कम्प्युटर के युग में....
डिलीट हो गए क्या?,
या पेनड्राइप का हिस्सा बन गए....
या सेव कर लॉक कर दिया,
या पासवर्ड मिल नहीं रहा है क्या?....
कंहा? खो गए हो तुम भारत,
कवि : किशन व्यास 
पिपरिया, मध्य प्रदेश  

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बचपन के रंग: मेरी रचना, मेरी सोच

बचपन के रंग: मेरी रचना, मेरी सोच

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यादें

"यादें"

यादें आती है,
यादें जाती है...
बचपन की यादें,
गाँव की यादें...
स्कूल की यादें,
खेलों की यादें...
ज्ञान की यादें,
इतिहास की यादें...
लोगों की यादें,
मिलन की यादें...
यादें कहती है,
यादें बोलती है...
साथियों की यादे,
विचारों की यादें...
साहित्य के यादों,
अब ये यादें...
शब्दों में, सपने में,
आती है जाती है...
गुनगुनाती, हंसती,
बस यादें ही यादें....

किशन का व्यास...

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आत्मा

आत्मा

शरीर ! तुझे,
ज्ञान है क्या ?
तेरे साथ,
एक आत्मा हैं ,
निराकार,
अदृश्य,
अमर,
परमात्मा का अंश !
वह सुनती बोलती है,
साथ देती है,
जन्म से मृत्यु तक,
क्या उसकी आवाज,
तुमको सुनाई देती है ?
इसे सुनो फ़िर विश्वास होगा,
परमात्मा का...

किशन व्यास

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जिंदगी

जिंदगी

जन्म से मौत तक का,
नजारा है,
जिंदगी....
कोई छूटा, कोई चला, कोई गिरा,
कोई मिला, कोई भूला..
बस यही तमाशा है,
जिंदगी.....
कोई चमका, कोई जीता, कोई हारा,
और बैठ गया मौत की लाइन में,
बस यही किस्सा है,
जिंदगी....
जन्म से मौत तक का,
नजारा है,
जिंदगी......

किशन व्यास

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पढ़ाई

पढ़ाई
पढ़ने को भाई पढ़ने को,
मन करता है भाई पढ़ने को...
किस्से- कहानी पढ़ने को,
चिठ्ठी - पत्री पढ़ने को...
अख़बार पढ़ने को,
खबरे जानने को....
पढ़ने को भाई पढ़ने को,
मन करता है भाई पढ़ने को...
हिसाब समझने को,
रेट पर बहस करने को...
चुनाव को जीतने को,
शोषण को लड़ने को...
पढ़ने को भाई पढ़ने को,
मन करता है पढ़ने को....

किसन भाई


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मामला

मामला
बकरी ने कुत्ते को मारा
देख नजारा गधा मुस्कराया ....
मामला उल्लू की समझ में
नहीं आया उसने...
चमगादड़ के पास पहुंचायां
शेर के अदालत में...
चीते ने बहस चलाई
और बकरी मरी पाई....

किशन व्यास

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कविता:- स्त्री

स्त्री
जीती है बस जीने के लिए
हँसती है बस बहारों के लिए
रोती है बस गम भुलाने के लिए
सोचती है बस ज़माने के लिए
सजती है बस ब्यापार के लिए
जन्म देती है बस संसार के लिए
स्त्री है सब.........सत्य है
साहित्य है...राजनीति है


किशन व्यास

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लगता है मै आदमी हूँ..................

लगता है मै आदमी हूँ ....
लगता है मै आदमी हूँ
मेरे दो हाथ दो पैर है
एक सर और एक पेट है
लगता है मै आदमी हूँ ....
पेट को देखने के लिए
मै सिर को झुकता हूँ,
पेट को देखने के लिए
काम पर जाता हूँ
और बहस करता हूँ रोटी के लिए......
पर यंहा भी,
पेट को देखने के लिए
सिर को झुकता हूँ रोज़....
सुबह झुकाता हूँ, शाम झुकाता हूँ
शाम को पेट गढ्ढा नजर आता है...
एक आग सी दिखाई देती है
आग को आग से बुझाता हूँ
लगता है मै आदमी हूँ.....
लगता है वह भी आदमी है ???
उसके भी दो हाथ दो पैर एक सिर
और एक पेट है....
उसे काम पर नही जाना होता
उसे रेट पर बहस नही करना होता
उसे पेट को देखने के लिए
सिर को झुकाना नही होता
क्यों की पेट ख़ुद-बा-ख़ुद सिर को
देखता है...
लगता
है की मै आदमी हूँ....

किसान का व्यास

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