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कविता,
प्यार,
भावनाए,
मोहब्बत,
स्त्री
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पर
10:47 pm
स्त्रीजीती है बस जीने के लिए
हँसती है बस बहारों के लिए
रोती है बस गम भुलाने के लिए
सोचती है बस ज़माने के लिए
सजती है बस ब्यापार के लिए
जन्म देती है बस संसार के लिए
स्त्री है सब.........सत्य है
साहित्य है...राजनीति है किशन व्यास
1 टिप्पणियाँ:
स्त्री की पीड़ा की भावनाओं को अच्छा शब्द दिया है आपने....
यूं ही लिखते रहिये...
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