लगता है मै आदमी हूँ..................

लगता है मै आदमी हूँ ....
लगता है मै आदमी हूँ
मेरे दो हाथ दो पैर है
एक सर और एक पेट है
लगता है मै आदमी हूँ ....
पेट को देखने के लिए
मै सिर को झुकता हूँ,
पेट को देखने के लिए
काम पर जाता हूँ
और बहस करता हूँ रोटी के लिए......
पर यंहा भी,
पेट को देखने के लिए
सिर को झुकता हूँ रोज़....
सुबह झुकाता हूँ, शाम झुकाता हूँ
शाम को पेट गढ्ढा नजर आता है...
एक आग सी दिखाई देती है
आग को आग से बुझाता हूँ
लगता है मै आदमी हूँ.....
लगता है वह भी आदमी है ???
उसके भी दो हाथ दो पैर एक सिर
और एक पेट है....
उसे काम पर नही जाना होता
उसे रेट पर बहस नही करना होता
उसे पेट को देखने के लिए
सिर को झुकाना नही होता
क्यों की पेट ख़ुद-बा-ख़ुद सिर को
देखता है...
लगता
है की मै आदमी हूँ....

किसान का व्यास

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1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

बहुँत ही सुन्दर परिभाषा दी है आपने आमिर और गरीब के फर्क की ... ब्लॉगजगत में आपक स्वागत है यूं ही लिखते रहिये ...